वनठाढ़ी ग्राम प्राचीन काल से ही विद्याध्ययनं का केन्द्र रहा है। पं॰ वाचस्पति मिश्र जिनकी कृति को पढ़े बिना भारतीय दर्शन का ज्ञान अधूरा ही रहता है, इसी ग्राम के निवासी थे। मैथिली रामायण के रचयिता स्व॰ कवीश्वर चन्दा झा ने भी पिण्डारूद्द को छोड़कर ठाढ़ी गांव में ही अपना निवास स्थान बनाना पसन्द किया। यहाँ एक डिग्री स्तरीय महाविद्यालय की आवश्यकता को महसूस करते हुए यहाँ के ग्रामीणों तथा बुद्धि जीवियों ने निर्णय लिया कि एक डिग्री महाविद्यालय की जानकारी रूद्रपुर ग्राम निवासी स्व॰ भगवन्त नारायण चैधरी केा हुआ तो उन्होने अपने सास-ससुर नेपाल निवासी स्व॰ कुशेश्वर झा एवं स्व॰ फूलदेवी के नाम से महाविद्यालय का नामकरण करने का अनुरोध किया साथ ही उन्होने उस समय एक लाख एक हजार एक सौ एक रूपया दान स्वरूप देने का वचन दिया। तत्कालीन प्रबंध समिति के सदस्यों ने इसे स्वीकार करते हुए महाविद्यालय का नामकरण फूल देवी कुशेश्वर झा के नाम से किया। इस तरह यह महाविद्यालय 1978 ई॰ से अद्यतन प्रगति के पथ पर अग्रसर है और अपने उदेश्य की पूर्ति करते हुए क्षेत्र के निर्धन, गरीब, पिछड़, अतिपिछड़ा अनुसुचित जाति एवं जन-जातियों के छात्र-छात्राओं के बीच उच्च शिक्षा का अलख जगा रहा है।
आशा ही नही अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह महाविद्यालय आने वाले समय में क्षेत्र की जनता की अपेक्षा को पूर्ण करने में सफलीभूत होगा।